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यीशु को अपने विश्वास से प्रभावित करना। "यीशु ने अचम्भित होकर कहा, 'मैंने इस्राइल मे भी ऐसा बड़ा विश्वास नहीं देखा।'" ( लूका 7: 9)

यीशु असानी से अचंभित नहीं हुआ। लेकिन यदि उसे सच मे कुछ आश्चर्यचकित कर सकता था तो वो लोगों का विश्वास था।

चलिए मरकुस 6: 1-6 से एक कहानी को याद करें, जब यीशु अपने नगर लौटा वो आराधनालयो मे >>>

आप परमेश्वर के प्रेम को कमा नहीं सकते पर आप परमेश्वर के प्रेम को सीख सकते हैं। "परमेश्वर प्रेम है। जो कोई प्रेम में रहता है वह परमेश्वर में रहता है।" (1 यूहन्ना 4: 16)

क्या आपने कभी सोचा है कि अपने सारे प्रयासों के बावजूद जो हम सोचते हैं कि सही है हम अपने आप को सच्चे जीवन और आनन्द से वंचित कर सकते हैं ?

हम उड़ाऊ पुत्र के दृष्टान्त को जानते हैं >>>

आपके विचारों मे ताकत है। आपके शब्दों मे अद्भुत शक्ति है। इसलिए सावधान रहिए कि आप क्या सोचते है औऱ क्या बोलते हैं? "जीभ के वश मे मृत्यु औऱ जीवन दोनों हैं"। (नीतिवचन 18: 21)

आपके शब्द आपके जीवन को निर्देशित करते हैं आज आप जिस चीज़ के बारे में बात करते हैं कल वो आपके पास होगा। परमेश्वर ने सृष्टि को अपने शब्द से बनाया। शब्द में रचनात्मक शक्ती है। आप निश्चय करते हैं >>>