तुम्हारी उपस्तिथि में बीमार चंगे हो जाते हैं, पापी पवित्र हो जाते हैं और अंधे देखने लगते हैं। तुम्हारी उपस्तिथि निराश लोगों के लिए आशा, और दबे हुए लोगों के लिए स्वतंत्रता लाती है। तुम्हारी उपस्तिथि के सामने पहाड़ मोम की तरह पिघल जाते हैं। (भजन संहिता 97: 5)
जब तुम धरती पर चले तो ऐसा कोई नहीं था जो तुम्हारे पास आया और तुम्हारी उपस्तिथि की महिमा से न छुआ गया। तुम्हारी उपस्तिथि हर ज़रूरत को पूरा करती है और आनंद, शांति और ख़ुशी की भरपूरी लाती है – सबकुछ जो एक आदमी की ज़रूरत है।
कुछ भी आपकी उपस्तिथि की महिमा को नहीं रोक सकता। अविश्वास ही एकमात्र बाधा है जो तुम्हारी उपस्तिथि की महिमा को इसके बदलाव का काम पुरा नहीं करने देता। जब तुम अपने क़स्बे मे आये तब तुम “वहाँ कोई चमत्कार ना कर सके” (मरकूस 6: 5) उनके अविश्वास की वजह से।
उन्होंने विश्वास नहीं किया की परमेश्वर भला है। उन्होंने विश्वास नहीं किया की चंगाई मुमकिन है। उन्होंने विश्वास नहीं किया की यीशु परमेश्वर का पुत्र है। उन्होंने विश्वास नहीं किया की यीशु परमेश्वर की वास्तविकता का अंतिम पूरा और परिपूर्ण प्रकाशन है।
लोग कहते हैं कि परमेश्वर लोगों को बीमार करता है। यीशु ने कितने लोगों को बीमार किया? एक भी नहीं। अगर यीशु ने ऐसा नहीं किया तो इसका मतलब है कि परमेश्वर ऐसा नहीं करता। यीशु ने कहा, “मैं और पिता एक हैं”। (यूहन्ना 10: 30) उस समय के धार्मिक अगुवे इस कथन से क्रोधित हो गये और यीशु को पत्थर मरना चाहते थे।
धर्म पापी को मारना चाहता है पर यीशु बचाना चाहता है। उसकी उपस्थिति हर एक को चंगा करती है जो उसके पास विश्वास से आता है। “और बिना विश्वास के परमेश्वर को प्रसन्न करना नामुमकिन है क्योंकि जो कोई उसके पास आता है उसे विश्वास करना है कि वह है और कि वह उनको इनाम देता है जो उसे पुरे दिल से ढूँढते हैं”। (इब्रानियों 11: 6)
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