यीशु को अपने विश्वास से प्रभावित करना। “यीशु ने अचम्भित होकर कहा, ‘मैंने इस्राइल मे भी ऐसा बड़ा विश्वास नहीं देखा।'” ( लूका 7: 9)

यीशु को अपने विश्वास से प्रभावित करना। "यीशु ने अचम्भित होकर कहा, 'मैंने इस्राइल मे भी ऐसा बड़ा विश्वास नहीं देखा।'" ( लूका 7: 9)

यीशु असानी से अचंभित नहीं हुआ। लेकिन यदि उसे सच मे कुछ आश्चर्यचकित कर सकता था तो वो लोगों का विश्वास था।

चलिए मरकुस 6: 1-6 से एक कहानी को याद करें, जब यीशु अपने नगर लौटा वो आराधनालयो मे शिक्षा देने लगा, वहाँ के लोग उसके परिवार को जानते थे इसलिए जब उन्होंने उसकी ज्ञान की ऐसी बातेँ सुनी तो एक दूसरे से अचंभित होकर पूछने लगे क्या बढ़ई का बेटा सच में इतना बुद्धिमान हो सकता है?

और जब उन्होंने यीशु को कुछ बीमार लोगों को ठीक करते देखा, तो वे फिर से आश्चर्यचकित होकर पूछने लगे, “एक बढ़ई ऐसे असाधारण काम कैसे कर सकता है?” वे उसकी बुद्धि और अनुग्रह से किए गए उसके छोटे-छोटे चमत्कारों पर आश्चर्यचकित थे। लेकिन यीशु उनके अविश्वास पर आश्चर्यचकित था, जिसने उसे कई बीमारों को ठीक करने से रोका।

अब, आइए लूका रचित सुसमाचार 7: 1-10 सॆ एक और कहानी याद करें। एक रोमी सूबेदार के पास एक नौकर था जो गंभीर रूप से बीमार था। इसलिए उसने यहूदी बुजुर्गों को यीशु से यह कहने के लिए भेजा कि वह आकर उसे ठीक कर दे। जब यीशु उसके घर से कुछ ही दूर था, तो अधिकारी ने अपने दोस्तों को एक संदेश के साथ भेजा जिसने मसीह को अंदर तक चकित कर दिया: “यीशु, बस बोल दो, और मेरा नौकर ठीक हो जाएगा!”

यीशु इस व्यक्ति के विश्वास की गहराई देखकर आश्चर्यचकित थे – भले ही वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से नहीं था! प्रभु इस बात से प्रभावित थे कि रोमी अधिकारी आध्यात्मिक सिद्धांतों को समझता था जिन्हें उस समय के धार्मिक लोग नहीं समझ सकते थे। सूबेदार अधिकार के साथ बोले गए शब्दों की शक्ति में विश्वास करता था। वह जानता था कि सैनिकों को अपने कमांडर द्वारा दिए गए हर आदेश का पालन करना पड़ता है।

यूहन्ना 1: 12 कहता है, “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, अर्थात् उसके नाम पर विश्वास किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया।” इसका क्या अर्थ है? जो लोग मसीह को स्वीकार करते हैं और उस पर विश्वास करते हैं, उन्हें उसकी सन्तान होने का अधिकार दिया जाता है। आपके पास वही अधिकार और योग्यताएँ हैं जो मसीह के पास थीं जब वह पृथ्वी पर रहते थे।

यीशु ने स्वयं यूहन्ना 14: 12 में इसकी पुष्टि की: “मैं तुम से सच सच कहता हूँ, जो मुझ पर विश्वास करता है, वह ये काम करेगा जो मैं करता हूँ, और इनसे भी बड़े काम करेगा।” जब आप विश्वास के साथ वचन बोलते हैं, तो परमेश्वर उन्हें सशक्त बनाता है। तब अदृश्य आध्यात्मिक वास्तविकता बदलने लगती है। याद रखें, दृश्य अदृश्य से आया है।

इसलिए आपको स्वयं को परमेश्वर के वचन से भरना चाहिए और उस पर विश्वास करना चाहिए। फिर, अपनी प्रतिकूल परिस्थितियों या बीमारियों को देखें और विश्वास के साथ परमेश्वर के भविष्यवाणी के वचन की घोषणा करें। यीशु स्वयं हमें ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। मरकुस 11: 22-24 कहता है:

आपका विश्वास परमेश्वर के मानकों के अनुरूप होना चाहिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरे वचन सत्य हैं। इसलिए आप में से कोई भी कह सकता है, “पहाड़, अपनी जगह से हट जा! जा और अपने आप को समुद्र में फेंक दे!” लेकिन आपको अपने दिल में संदेह नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, आपको विश्वास करना चाहिए कि पहाड़ आपकी बातों का पालन करेगा। तब आप अपनी बोली गई बातो का परिणाम देखेंगे। इसलिए मैं आपसे कहता हूँ: “विश्वास करें कि आपने परमेश्वर से जो कुछ भी माँगा है, वह आपको पहले ही मिल चुका है, और आप अपनी प्रार्थना का उत्तर देखेंगे।”

यीशु को अपने विश्वास से प्रभावित करना। "यीशु ने अचम्भित होकर कहा, 'मैंने इस्राइल मे भी ऐसा बड़ा विश्वास नहीं देखा।'" ( लूका 7: 9)