आप परमेश्वर के प्रेम को कमा नहीं सकते पर आप परमेश्वर के प्रेम को सीख सकते हैं। “परमेश्वर प्रेम है। जो कोई प्रेम में रहता है वह परमेश्वर में रहता है।” (1 यूहन्ना 4: 16)

आप परमेश्वर के प्रेम को कमा नहीं सकते पर आप परमेश्वर के प्रेम को सीख सकते हैं। "परमेश्वर प्रेम है। जो कोई प्रेम में रहता है वह परमेश्वर में रहता है।" (1 यूहन्ना 4: 16)

क्या आपने कभी सोचा है कि अपने सारे प्रयासों के बावजूद जो हम सोचते हैं कि सही है हम अपने आप को सच्चे जीवन और आनन्द से वंचित कर सकते हैं ?

हम उड़ाऊ पुत्र के दृष्टान्त को जानते हैं जो लूका के 15 अध्याय में लिखा गया है। सामन्यतः हम बड़े और छोटे बेटे के बीच के अन्तर पर ध्यान देते हैं हालाकि आज मैं आपका ध्यान इस बात पर लाना चाहूँगी कि उन्हें क्या जोड़ता है।

मुझे बताओ की छोटा बेटा पिता के घर को क्यूँ छोड़ता है? क्योकि उसे विश्वास था कि जीवन के सारे सुन्दर पल और सबसे अधिक रूचिकर चीज़ें सिर्फ दुनिया में पाई जा सकती थी। शायद वह इस निष्कर्ष पर इसलिये पहुॅचा क्योंकि उसने अपने बड़े भाई का उदाहरण देखा, जो बिना किसी छुट्टी या अन्तराल के कड़ी मेहनत करता था। (लूका 15: 29)

इसलिये छोटे बेटे ने निर्णय लिया कि असली जिंदगी और सबसे ज्यादा रोमांचक पल उसके हाथ से छूट रहे हैं। एक उदासीन और आनंदरहित जीवन किसे चाहिए? इसलिये उसने अपने पिता से अपनी विरासत का हिस्सा माँगा और उसके बाद वह वहाॅ चला गया जहाॅ उसकी दृष्टि में, जीवन अधिक मज़ेदार और दिलचस्प था। अन्त में जीवन के इन आंनदो ने उसे एक दयनीय अस्तित्व में पहुॅचाया और उसने खुद को सुअरों के बीच में पाया।

बडे और छोटे बेटे के बीच में क्या समानता है? बड़े बेटे को भी विश्वास था कि पिता के घर में जीवन में कोई आनंद नहीं था। लेकिन, अपने छोटे भाई की तरह उसमें घर छोड़ने का साहस नहीं था। बड़ा बेटा पिता के साथ रहा लेकिन वह चिड़चिड़ा हो गया और लगातार बहुत सारा काम करने की शिकायत करता था। छोटे बेटे की तरह वह भी नहीं समझ पाया की पिता के घर में जीवन आनंदित और संतोष जनक हो सकता था।

दृष्टांत का अंत पिता की छोटे उड़ाऊ पुत्र के लिए बड़ी दावत देने से होता है जिसमें वह बड़े बेटे को भी आमंत्रित करता है। लेकिन बड़े बेटे की बहुत ज्यादा सख्त धार्मिकता और आज्ञाकारिता पर ध्यान ने उसे दावत का आनंद नहीं लेने दिया। इसके बजाय वह अपने पिता के प्रति, जिसके लिए उसने इतने साल इतनी वफादारी से काम किया, धार्मिक रोष और निराशा से भर गया। (लूका 15: 28)

इस दृष्टांत का सार यह है कि दोनों बेटों में से कोई भी अपने पिता के हृदय को सच में नहीं जानता था। उन दोनों को विश्वास था कि मसीहत नियमों और कठिन परिश्रम का नीरस पालन था। वे नहीं समझ पाए की मसीहत का सार है पिता के प्रेम का आनंद लेना जो हमारे आनंद के लिए सब कुछ बहुतायत से देता है। (1 तिमुथियुस 6: 17)

अपने जीवन पर चिंतन करें। आपके लिए मसीहत का क्या मतलब है? शायद अपने आत्मिक जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण उस बड़े बेटे की तरह हो। ऐसी स्थिति में, हो सकता है कि आप सभी नियमों का कड़ा पालन करते हैं। पर आप ऊब जाते हैं और यह आपको कोई आनंद नहीं देता।

या हो सकता है कि आपके जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण छोटे बेटे की तरह हो। ऐसी स्थिति में, शायद आपने अपने विचार या नियम बनाए हों जो परमेश्वर के वचन का खंडन करते हों। इसलिए जब आप आराम करना चाहते हैं या मौज-मस्ती करना चाहते हैं, तो आप वही करते हैं जो दुनिया आपको देती है।

आप अपने जीवन को कैसे बदल सकते हैं? आप खुद को उस सच्ची ज़िंदगी और आनंद से वंचित होने से कैसे बचा सकते हैं, जो सिर्फ परमेश्वर दे सकते हैं? हमें सचमुच अपने पिता परमेश्वर के हृदय को जानने की जरूरत है। तब हम समझेंगे कि वह हमसे कितना प्यार करता है और हमें सब कुछ देता है ताकि हम उसके घर में आनंदित और खुश रह सके।

#दिलसेदिलतक Stan & Lana
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